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कविता

चेहरे भी आरी हो जाते हैं

यश मालवीय


यादों में जब रखना होता है
यही फूल भारी हो जाते हैं

इनको चुनने के क्रम में हँसकर
पलकों से काँटे भी चुनने पड़ते हैं
बुझी बुझी आँखों के परदे पर
खोए से सपने भी बुनने पड़ते हैं
धीरे धीरे मन पर चलते हैं
चेहरे भी आरी हो जाते हैं

बोझ भले कोई भी, हल्का हो
सिर भारी मन भारी होता है
बिना बात बेमन यात्राओं की
अस्त व्यस्त तैयारी होता है
बीते दिन बह आते गालों पर
आँसू की धारी हो जाते हैं


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